top of page

The infinite ocean and me

20220529_140435.jpg

"अथाह समुंदर और मैं"

अनुभव की सीमा क्या है?
क्या है समय का गहरा राज?
नए आयाम की ध्वनि, क्या है वह साज?
आज मैं Groix के आंगन में खड़ा हूं।

यह एक द्वीप है।
यहां लहरों का संगीत, चट्टानों की उमंग है।
परिंदों की गाथा,

अनगिनत जीवों का संगम है।

आस है की मैं उनसे रूबरू होऊँगा।
हम निकल पड़े थे अपने स्कूबा सफर के लिए।
सभी बहुत उत्साहित थे।
ये उत्साह एक अलग दुनिया को देखने का था?
या समुंदर की असीमितिता का आंकलन करने का?

क्या सच में समुंदर असीमित है?
क्या सच में मैं उसके प्रकृति को जान पाऊंगा?
क्या जो मैं अनुभव करूंगा वही वास्तविकता होगी?
शायद बहुत से प्रश्न हैं।
अब यदि समय में रहूंगा तो,
शायद वही वास्तविकता हो।

आखिर कार उस पल से रूबरू हो ही गया।
इस सफर में छै बार समुंदर जीवों को देखने का अवसर मिला।
मैं उन सभी पालो को लिखना चाहता हूं।
सभी अनुभव को फिर से जीना चाहता हूं।
शब्दों से वास्तविकताओं को पिरोना चाहता हूं।

उबाल भरी तेज लहरे।
सीने को चीरती सी यान का सफर।
हवा का रुख बहुत उत्साही महसूस हो रहा था।
मानो वो हमारे स्वागत में पानी को स्थिर करना चाह रही थी।
पर उसका स्वभाव तो उत्तेजना से पूर्ण लग रहा था।
चट्टानें उसके साथ गले लग रही थी।


इसी खुसनुमे माहौल में हम पानी में जा चुके थे।
हमारे साथ सभी उपकरण थे।
साथ ही न जाने कितनी भावनाएँ और प्रश्न।

पानी के अंदर सांस लेना आसान था।
दृश्य बहुत ही साफ और रंगो से भरा हुआ।
सूर्य की करने भेदती हुई नीचे तक आ रही थी।
किरणों की भी चाह थी,
अपनी असीममितिता को, समुंदरी असीमितिता से मिलाने की।
उनके मित्रता की एक नय आयाम को देखा।

सांसों के बुलबुले उपर उठ रहे थे।
सूर्य किरणों से उनकी सुंदरता भी अविवरणीय थी।
चमकते दाने रेत के, चहरे पर आ रहे थे।
आंखों को अलग शांति का आभास हो रहा था।


अनेकों तरह की मछलियों को देखा।
सुनहरी, बैगनी, लाल, और बिना रंगो के भी।
क्या मैं उनको बिना रंगो के बोल सकता हूं? 
शायद नही।
जेली मछली अलग ही करतब कर रही थी।
कुछ मछलियों का झुंड साथ में विचरण कर रहा था।
साथ में होने की सुंदरता भी अलग है।
आखिरकार सभी साथ में अनुभवों को साझा तो कर सकते है।

मछलियों का भी घर होता है।
मेरा मतलब पानी से नही था।
कुछ को रेत में दबा पाया।
कुछ रंग बिरंगी घांस के पीछे।
तो कुछ का अपनों के साथ रहना ही घर था।

हा समुंदरी घांस की अजीबोग़रीब दुनिया देखी।
कुछ का वास्तविक रंग था तो कुछ सूर्य किरणों की वजह से।
एक रंगो का वर्णक्रम देखा, लाल से बैगनी तक।
कुछ तो दिशाओं के साथ बदलते हुए।
मानो वो अपनी गर्दन मोड़ के हमें ही देख रहे थे।

जलमग्न इस जहां में एक तेज हवा का प्रवाह था।
इसी बीच मेरे हाथों में एक पीले रंग की घास आ पड़ी।
शायद मैं उसको पीला नहीं बोलना चाहूंगा।
वो रंग कुछ अलग ही था।
उसमे पानी की एक छाया थी,
सूर्य किरणों का विकरण था।
छोटे छोटे छिद्र, खुल और बंद हो रहे थे।
शायद कुछ बाते करना चाहते थे।

इसी के साथ यह सफर खत्म हुआ।
बहुत से जवाब तो मिल गय थे मुझे,
पर अनेकों खलल अब भी कही घर की हुई थी।
एक नए अनुभव की सुंदरता ही अलग होती है,
आप अपनी जिज्ञासा के घड़े को भरते तो है ही,
पर साथ ही एक नए जीवंत सृजन को,
मन मंदिर में जगह दे बैठते है।
शायद यही जीवन का स्वरूप है।

“The infinite ocean and me”

What is the limit of experience?

What is the deep secret of time?

The sound of a new dimension—what music hums there?

Today, I stand in the courtyard of Groix.

 

An island, a world of its own,

Here, the music of waves meets the thrill of rocks.

The saga of birds soars high,

A confluence of countless lives unfolds below.

 

I yearn to meet them.

We set sail for our scuba venture,

A crowd of excitement buzzing in the air.

Was it to glimpse a different world?

Or to measure the boundlessness of the sea?

 

Is the ocean truly limitless?

Will I grasp its essence?

Will my senses touch reality?

Questions ripple endlessly.

But if I sink into this moment—

Perhaps, that will be the truth.

 

Finally, I meet the vast unknown.

Six times, I encountered the ocean's creatures.

I wish to write these moments,

To relive, to weave them into words,

A necklace of liquid realities.

 

Boiling waves.

The ship’s journey felt like tearing through hearts.

The wind danced joyfully,

As if steadying the sea in our welcome.

Yet, its nature brimmed with restless fervor,

The rocks clung to her, in a playful embrace.

In this harmony, we plunged into the depths,

Equipped with tools,

Armed with questions and untamed emotions.

 

Underwater, breathing came easy.

A world vivid, painted in light.

Sunbeams pierced the depths,

Melding their infinity with that of the sea.

I saw their silent communion.

 

Bubbles of breath floated upwards,

Each a gleaming pearl against the sun’s splinters.

Glittering sand grains kissed my face,

My eyes found a rare peace.

 

Fish of every hue danced before me—

Golden, purple, scarlet, and those without colors.

Or can anything truly be colorless?

Perhaps not.

Jellyfish swayed, delicate performers in a watery ballet.

A school of fish moved as one,

A hymn to the beauty of togetherness.

Even the sea’s creatures knew of home—

Not just water, but sanctuaries:

Some nestled in the sand,

Others cloaked in seagrass,

And for some, home was the embrace of their kin.

 

Seagrass wavered, a vibrant world of its own.

Some bore true colors, others borrowed the sun's touch,

A shifting spectrum, red to violet.

They seemed to turn their heads,

Watching us, curious visitors.

The submerged winds stirred,

And a golden blade of grass slipped into my hand.

But was it gold?

No, it held a hue beyond words—

A whisper of water’s shadow,

A prism of scattered sunlight.

Tiny holes blinked open and shut,

As if sharing a secret.

 

With this, the journey reached its shore.

Answers drifted into my grasp,

Yet new questions churned in hidden currents.

The beauty of a fresh experience is its gift:

It quenches the thirst of curiosity,

While planting seeds of new wonder,

In the sacred temple of the mind.

Perhaps this is life’s essence—

To seek, to know, and still,

To remain enchanted by the unknown.
 

bottom of page